Saturday, September 3, 2016

रंगमंच की बिसात के वैश्विक खिलाड़ी -- सईद जाफरी

भारतीय फिल्मों को मुख्य तौर पर दो धडों में बांटा जाता है. पहला व्यावसायिक सिनेमा जिसे चालू और मसाला  फिल्मों का सिनेमा भी कहते हैं और दूसरा समानांतर सिनेमा, जो ज्यादातर सामाजिक सरोकार और मुख्यधारा से उपेक्षित विषयों, मसलों और समाज की आवाज को परदे पर उतारता था. जाहिर है इन्हीं दो धाराओं में न सिर्फ सिनेमा बंटा था बल्कि बल्कि अभिनेता भी बंटे थी. सुपरस्टार और हीरो की छवि में कैद कलाकार व्यावसायिक सिनेमा के पैरोकार थे तो वहीँ गैर परम्परागत चेहरे मोहरे और थियेटर की पृष्ठभूमि से आये कलाकार पैरेलल यानी समानांतर सिनेमा के पैरोकार थी. एक तरफ मसाला सिनेमा जहाँ दिलीप कुमार, राज कपूर से लेकर खान, कपूर और कुमार सितारों तक सिमटा है तो वहीँ समानांतर सिनेमा में नसीरुद्दीन शाह, फारुख़ शेख़, अमोल पालेकर, ओम पुरी, कुलभूषण खरबंदा, नीना गुप्ता, सुरेखा सीकरी, स्मिता पाटिल, शबाना आजमी जैसे अनूठे अभिनेता थे. हालांकि यह विभाजन कई बार धुंधला भी होता है और एक दुसरे धड़े के कलाकार प्रयोगों से गुजरते हैं.

लेकिन सईद जाफरी जैसे कुछ कलाकार ऐसे भी होते हैं जो इन सीमाओं से परे वैश्विक रंगमंच में कलाकार की उस हैसियत को छू लेते हैं जो किसी ख़ास मुल्क या बिरादरी की मुहताज नहीं होती. सईद जाफरी को बतौर कलकार परिभाषित करना बेहद मुश्किल है. बौलीवुड के शौक़ीन उन्हें आमिर खान की दिल, और राज कपूर की फिल्म राम तेरी गंगा मैलीके मामा कुंजबिहारी की भूमिका के लिए,  हास्य रसिक उन्हें चश्मेबद्दूरके पानवाला लल्लन मियां के लिए याद करते हैं. लेकिन सईद जाफ़री होने का अर्थ सिर्फ हिंदी फिल्में ही नहीं है. अर्थपूर्ण फिल्मों के शौकीनों की नजर में वह महान फिल्मकार सत्यजीत रे के फिल्म शतरंज के खिलाड़ी के नवाब मिर्ज़ा है जो शतरंज की बाजिओं में इस कदर मशरूफ है की उसे लखनऊ के बदलते सियासी हालातों की फिक्र ही नहीं. और इंटरनेश्नल फिल्म बिरादरी में जो पहचान सईद जाफरी की है वो चंद भारतीय समझते हैं जो लन्दन थियेटर से वाकिफ और हॉलीवुड की चालू मसाला फिल्मों से इतर भी अंग्रेजी सिनेमा को कुछ समझते हैं. उन्हें वे ए पैसेज टू इंडिया, द फार पैविलियंस और माय ब्यूटीफुल लौन्ड्रेट सहित महान फिल्म गांधी के सरदार पटेल की भूमिका के लिए जानते हैं. एक ही दौर में अभिनय के इतने आयामों और अलग अलग देशों में सक्रिय रहे सईद ने 80 और 90  के दशक न जाने कितने यादगार काम किये हैं.  

सईद जाफरी की खासियत यही थी के वह वे कला फिल्मों में और बौलीवुड मसाला फिल्मों में उतनी ही शिद्दत से काम करते थे जितना अमेरिका के हॉलीवुड और और ब्रिटिश फिल्मों, बीबीसी की सीरीज और थियेटर में. चश्मे बद्दूर के शौक़ीन और दिलफेंक मिजाज पानवाला से लेकर ठसकदार नवाब की भूमिकाएं अदा करने वाले बहुमुखी अभिनेता सईद जाफ़री का पिछले दिनों 86 वर्ष की अवस्था में लंदन स्थित आवास पर ब्रेन हैमरेज से निधन हो गया. पंजाब के मालेरकोटा नामक गांव में 8 जनवरी
, 1929 को जन्में सईद जाफ़री के मातापिता उन्हें सिविल सर्विस में लाना चाहते थी लेकिन बचपन से ही खानाबदोश स्वभाव के रहे सईद को तो अभिनय के मैदान में उतरना था लिहाजा उन्होंने एक दिन पिता से दिल्ली घूमने की इजाजत मांगी और दिल्ली की उस रेलयात्रा में एक दिल्ली के दोस्त से हुई मुलाक़ात उन्हें ऑल इंडिया रेडियो तक ले आयी और फिर वहां उन्होंने पब्लिसिटी और एडवरटाइजिंग डायरेक्टर के तौर पर काम किया.
यहां से शुरू हुआ सफ़र कब जाकर नाटक की दहलीज पर पहुँच गया उन्हें खुद ही पता नहीं चला. बाद में जब उन्होंने 1951 में न्यू यूनिटी अमेच्योर थिएटर की स्थापना की तब वह पूरी तरह से रंगमंच के खिलाड़ी बन चुके थे. ज़मींदार खानदान के सईद में कला का गुण ननिहाल से आया. बीबीसी को दिए एक साक्षात्कार में सईद साहब ने स्वीकार किया था, बस, यूं ही शायरी पढ़तेपढ़ते और मामा के ख़तों का जवाब देते-देते मैं ख़ुद शायर बनने लगा.  शेर-ओ-शायरी का यही शौक उन्हें उर्दू, अंगेज़ी और हिंदी अदब तथा आगे चलकर अभिनय की दुनिया में खींच ले गया. उनके बारे में कहा जाता है की वह भारतीय होने के बावजूद विदेशों में अपनी परफेक्ट ऑक्सफ़ोर्ड स्टायल की अंगरेजी बोलने के लिये जाने जाते थे.


इसी रंगमंच की दुनिया में उनकी कला से प्रभावित होकर उन्हें लन्दन में नाटक करने का बुलावा आया. और इस इस तरह सईद जाफरी एक साथ हिंदी सिनेमा, रंगमंच और लन्दन थिएटर में एक साथ काम करने वाले शायद पहले भारतीय बन चुके थे. जाफ़री ने द एक्टर्स स्टूडियो  में थोड़े समय के लिए जगतप्रसिद्ध अभिनेत्री मर्लिन मुनरो के साथ काम किया था. लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा मिली उन्हें 1962 में ब्रॉडवे के प्रोडक्शन अ पैसेज टू इंडिया में प्रोफेसर गोडबोले के किरदार से. इस प्रकार ब्रॉडवे के साथ काम करने वाले वह पहले भारतीय बने. अपने करियर के दौरान उन्होंने हॉलीवुड के कई दिग्गजों के साथ काम किया. वह ऐसे पहले भारतीय अभिनेता थे जो शेक्सपियर के नाटकों को लेकर पूरे अमेरिका में घूमे. इस बीच एक नाटक के दौरान उनकी मुलाकात अभिनेत्री और ट्रेवलर मधुर बहादुर से हुई. कला की उर्वरक ज़मीन पर दो कलाकार के बीच रोमांस का रसायन कुछ यों बना कि दोनों ने एक ज़िंदगी गुजारने की ठान ली. लेकिन पता नहीं क्यों दुनियाभर के संजीदा कलाकार, शायर और वैज्ञानिक, लेखक, दुनियादारी के तमाम किरदारों को सम्पूर्णता से निभाते हुए घर में पति के किरदार में असफल हो जाते हैं. सईद के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ और दोनों अलग हो गए. शायद एक आदर्श विवाह की राह में आज़ाद ख्याली ही सबसे बड़ा रोड़ा होती है जबकि उम्दा कलाकार होने के लिए सबसे जरूरी भी यही आज़ाद ख्याली ही है
.
बहरहाल, जाफ़री की मधुर के साथ यूएसए में ज्यादा दिन निभ नहीं सकी. सन 1965 में दोनों का तलाक हो गया. उनकी तीनों बेटियां ज़िया, मीरा और सकीना मां के साथ रह गईं और सईद फिर से ब्रिटेन आ गए. कहते हैं कि ब्रिटेन में सईद को नए सिरे से संघर्ष करना पड़ा. छोटीमोटी भूमिकाओं के आलावा कई नौकरियां भी की ताकि रोजी रोटी का जुगाड़ हो सके. 1980 में उन्होंने जेनिफर जाफरी से शादी की. लेकिन सईद साहब का आखिरी वक़्त शराब की आगोश में ही गुजरा. यह भी एक अजीबोगरीब इत्तेफाक है कि ज्यादातर गंभीर कलाकार परिवार में अकेले रह जाते हैं और आखिरी वक़्त में उनका साथ शराब ही निभाती है. महान फ़िल्मकार गुरुदत्त से लेकर मीना कुमारी, सुपरस्टार राजेश खन्ना इसी शराबनोशी में दुनिया को अलविदा कह गए. सईद भी शराब को गले लगा चुके थी.
शराब को लेकर बेहद दिलचस्प किस्सा बयान करते हुए फिल्म समीक्षक जय प्रकाश चौकसे कहते हैं कि सईद जब दावतों में शरीक होते तो हमेशा उनकी कोट में चांदी का गिलास होता. और शराब केवल उसी गिलास में पीते और पीते पीते मजेदार किस्से सुनाते हर दावत के आरम्भ में मेजबान से कहते कि अगर वे पीतेपीते होश खो दें तो बराय मेहरबानी उनका चांदी का गिलास उनकी जेब में रखकर ही उन्हें अपने कमरे में भिजवा दें. हालांकि वे चाहते तो और भी चांदी के गिलास ले सकते थे. लेकिन कुछ बात थी, जिसे सिर्फ वे ही जानते थे. 


कई कलाकार ऐसे होते हैं जिनके योगदान का मूल्यांकन आने आली पीढी नहीं कर पाती.सईद जाफरी के जीवन के कई ऐसे पहलू आज भी हम नहीं जानते. कारण, उन्होंने होने भारत से ज्यादा काम विदेशों में किया और विदेशी काम को 80-90 के दशक में भारतीय मीडिया न तो हम तक सही से पंहुचा पाइ और न ही सईद ने कभी अपनी काम को लेकर अंतरराष्ट्र्रीय मंच पर कोई ढिंढोरा पीटा. सिर्फ अपने काम में डूबे रहे सईद जाफरी ने जब आखिरी सांस लन्दन में ली तो उनके चाहने वाली लोगों की यहाँ आँखें नम जरूर हुई होंगी. सईद जैसी कलाकार शतरंज की हर बिसात और रंगमंच की हर विधा में माहिर खिलाड़ी होते हैं.     

सईद का फिल्मनामा 
उन्होंने द मैन हू वूड बी किंग 1975, शतरंज के खिलाड़ी 1977,, गाँधी 1982,  ए पैसेज टू इंडिया 1964, बीबीसी संस्करण एवं 1984 फ़िल्म, द फार पैविलियंस (1984) और माय ब्यूटीफुल लौन्ड्रेट 1985 सहित विभिन्न फ़िल्मों में अभिनय किया. उन्होंने 80 और 90  के दशक में विभिन्न बॉलीवुड फ़िल्मों में भी काम किया. उनकी अहम फिल्में रही हैं, गांधी, मासूम, शतरंज के खिलाड़ी, हिना, राम तेरी गंगा मैली, चश्मे बद्दूर, जुदाई अजूबा, दिल, किशन कन्हैया, घर हो तो ऐसा, राजा की आएगी बारात, मोहब्बत और आंटी नंबर वन. वहीं तंदुरी नाइट्स और ज्वेल इन द क्राउन जैसे टीवी शो के लिए भी सईद जाने जाते रहे हैं.


·         जाफरी ने करियर की शुरुआत दिल्ली में थिएटर से की थी.
·         1951-1956 तक ऑल इंडिया रेडियो में पब्लिसिटी, एडवरटाइजिंग डायरेक्टर के तौर पर रहे.
·         जाफ़री ने द एक्टर्स स्टूडियोमें अभिनेत्री मर्लिन मुनरो के साथ काम किया था.
·         सईद पहले भारतीय थे जिन्हें 'आर्डर ऑफ ब्रिटिश एम्पायर' अवॉर्ड मिला था.
·         सईद जाफरी साहब ने 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया.
·         फिल्म 'शतरंज के खिलाड़ी' के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाजा गया.
·         1988-89 से बीच प्रसारित हिट सीरीज 'तंदूरी नाइट्स' में भी उन्होंने काम किया है.
·         ऑस्कर विजेता फ़िल्म 'गांधी' में सरदार वल्लभ भाई पटेल की भूमिका निभाई थी।

·         पियर्स ब्रोसनन, शॉन कोनरी और माइकल केन जैसे बड़े नाम उनके सह कलाकार रह चुके हैं.                                                                                                                                       
                                                  -----RAJESH S. KUMAR

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