पिहले माह हास्य कलाकार कपिल
शर्मा के कॉमेडी शो 'कॉमेडी नाइट्स विद कपिल' की शटर बंद होने से चंद एपिसोड पहले शो
में पलक का किरदार निभाने वाले कीकू शारदा को शो के दौरान डेरा सच्चा सौदा प्रमुख
गुरमीत राम रहीम का मजाक उड़ाने के सिलसिले में मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार किया. एक
ही दिन उनकी दो बार गिरफ्तारी हुई. कीकू का कसूर सिर्फ इतना था कि उसने एक गैग
एक्ट के दौरान राम रहीम की फिल्म 'एमएसजी-टू' के एक सीन को हसोड़ अंदाज में पेश किया था.
हालांकि इसमें अपराध वाली कोई बात नहीं थी क्योंकि भारत में हास्य परम्परा कोई आज
की नहीं है और इस तरह के शो में पहले भी बड़े फिल्म कलाकारों के आलावा पूर्व
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से लेकर राहुल गाँधी, अरविन्द केजरीवाल और मौजूदा पीएम
नरेन्द्र मोदी तक पर हास्य कसा जाता है. ऐसे में 'एमएसजी-टू' जैसी फिल्म पर
जो खुद राम रहीम की इमेज को रजनीकांत... फिल्म में राम रहीम एक मुक्के से हाथी को
हवा में उड़ा देते हैं और एक हाथ से सैकड़ों तीरों को हवा में रोकने जैसे चमत्कारी
स्टंट्स को अंजाम देते हैं.... सरीखी पेश करती है, हास्य करना बड़ी बात नहीं होनी चाहिए थी. लेकिन
हमारे यहाँ तो धर्म का नशा अफीम से भी ज्यादा तेज है, लिहाजा राम रहीम जी के बुरा
लगने से पहले ही उनके अंधभक्तों, समर्थकों की धार्मिक भावनाएं आहत हो गईं. उस पर तुर्रा यह
की आमतौर पर भ्रष्ट और सुस्त गति सी काम करने के लिए बदनाम पुलिस सिर्फ एक शिकायत पर
हरियाणा से मुम्बई जाकर कीकू को अरेस्ट कर लाई. गोया कीकू कोई हास्य कलाकार न होकर
कोई आतंकी गिरोह का सरगना हो. इस मामले कीकू को न सिर्फ माफी मंगनी पड़ी बल्कि मोटी
रकम के मुचलके पर जमानत भी लेनी पड़ी.
हास्य और आहत
भावनाएं
इसी तरह हास्य पर एक तरह से लगाम
कसने के लिए कुछ अरसा पहले संताबंता के जोक्स के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में इन्हें
बंद करने के लिए सिख वकील हरविंदर चौधरी ने एक याचिका दायर की और हाल में सिख
गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने अदालत का दरवाजा खटखटाया, इनकी भी भावनाएं आहत हो रहीं थी.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने किसी समुदाय का मजाक उड़ाने वाले चुटकुलों को लेकर
गाइडलाइन बनाने की संभावना पर विचार करने को कहा है. अगर सिख समुदाय पर संता बंता जोक्स
सिर्फ इस आधार पर बैन कर दिए जाते हैं तो फिर हर तरह के जोक्स बंद होने चाहिए. क्योंकि
कई तरह के जोक्स यूपी बिहार और उत्तर पूर्व के लोगों पर केन्द्रित होते हैं. न
सिर्फ संता बंता बल्कि, पति-पत्नी, टीचर-स्टूडेंट, पड़ोसी, जीजा साली, और इस तरह से किसी भी
जाति या वर्ग विशेष को निशाना बनाने वाले जोक्स पर गौर कीजिए कहीं न कहीं किसी न
किसी की भावना आहत हो ही रही होगी. हम अंग्रेजों, विदेशियों को लेकर मजाक बनाते
हैं क्या अदालतों में इन्ही भी याचिका डाल देनी चाहिए. दरअसल हास्य किसी ख़ास धर्म
समुदाय के अपमान के लिए, बल्कि मनोरंजन के लिए मजाकिया तौर पर प्रयोग किया जाता है.
हास्य बोध और
आत्मविश्वास
उदाहरण के तौर पर इस चुटकले को ही लीजिये,
संतों और बंतों अपने पतियों के बारे में बात कर रही थी.
संतों ने कहा विधवाएं हमसे बेहतर हैं.
बंतों वह कैसे.
संतों कम से कम उन्हें यह तो पता होता है उनके पति कहां हैं.
अब इसे हास्य बोध से सुनें और हँसे तो शायद किसी को आपत्ति नहीं होगी
लेकिन अगर विरोध ही करना है तो इस पर संतो बंतो समेत तमाम विधवा समाज भी आहत होने
की बात कर सकता है. यहाँ तो हमें खुद फैसला करना है कि हास्य को स्वस्थ मनोरंजन के
की तरह लें या फिर.. इस मसले पर वरिष्ठ लेखक खुशवंत सिंह बड़े दिलचस्प अंदाज में
कहते थे, सिखों के बारे में सरदार जी के चुटकुले सबसे ज्यादा हैं. हालांकि यह
हमेशा दूसरों से आगे रहते हैं फिर भी उन्हें बिना दिमाग वाला कहा जाता है. मजे की
बात यह है कि ऐसे ज्यादातर चुटकुले उनकी ही कौम के लोग बनाते हैं. जात बिरादरी को लेकर गढे़ गए चुटकुले भले ही आमतौर से अच्छे
नहीं समझे जाते. लेकिन दुनियाभर में इन चुटकुलों की भरमार है. इनका लक्ष्य हमेशा
वह समुदाय होता है जो देश में दूसरों से बेहतर होता है. या कहें तरक्की कर चुके
तबके से ईर्ष्या के प्रतिरूप इस तरह के चुटकुले बनते है. जैसे मारवाड़ी बनियों के
बारे में चुटकुले कहे जाते हैं. केवल वही अपने आप पर हंस सकता है जिसमें
आत्मविश्वास होता है.
दुःख की बात है कि यह आत्मविश्वास अब न सिर्फ सिख समाज बल्कि समाज का हर
तबका खो चुका है शायद इसलिए हास्य से इतना परहेज किया जा रहा है. इस मामले में तो आलिया भट्ट से सबक लेने की
दरकार है. आलिया को खुद का मजाक उड़ाने से कोई परहेज नहीं है. गौरतलब है कि आलिया ने करन जौहर के शो में
भारत के राष्ट्रपति का नाम पृथ्वीराज च्वहाण बताया था. इसी के बाद आलिया भट्ट के
नाम से जोक्स भी चलने लगे. उनकी आईक्यू, सामान्य ज्ञान और और मूर्खता को लेकर सोशल
मीडिया में जमकर चुटकुलेबाजी हुई और आज भी यदा कदा उनकी कम दिमागी को लेकर व्यंग्य
का दिया जाता है. लेकिन ने बजाये इस बात पर चिढने या किसी पर मानहानि का दावा
ठोकने के आलिया ने एक वीडियो के जरिए खुद का मजाक बनाया और अपने आत्मविश्वास का
परिचय दिया.
इंसान हँसते
हैं पशु नहीं
एक अंग्रेजी में मशहूर कहावत है,
मैन इज ए लाफिंग एनीमल यानी मनुष्य एक हँसने वाला प्राणी है. गौर करें कि दुनिया में
करोड़ों प्रकार के जीव हैं लेकिन प्रकृति ने हास्य बोध या कहें हंसने की कला सिर्फ
हम इंसानों को दी है और जब जब हंसने के मौके आते हैं हम छोटी बातों पर मुंह लटका
लेते हैं. पशुओं को कभी हँसते नहीं देखा गया है. मनुष्य को पशुओं से
इतर बुद्धि, विवेक
तथा सामाजिकता आदि के साथ हास्य का जो तोहफा मिला है उसे यों ही जाया जाने देना
मूर्खता होगी. दुनिया में हर इंसान का रहनसहन, आचारविचार, परम्परा, भाषा व व्यवहार में लाख अंतर हो लेकिन
जो चीज सबको सामने तौर पर जोडती हैं वो है हँसी की वृत्ति सब में समभाव से
विद्यमान है.
मजाक उड़ाना बनाम बनाना
मिमिक्री आर्टिस्ट और टीवी कलाकार सुगंधा मिश्र को लता मंगेशकर की बेहतरीन
मिमक्री के लिए जाना जाता है. लेकिन जब हाल में के कार्यक्रम के दौरान उन्होंने
यही एक्ट दोहराया तो कुछ लोगों तीखी आलोचना की. हालांकि लता जी का सेन्स ऑफ़ ह्यूमर
ज्यादा बेहतर निकला. इसलिए उन्होंने मामले को हंसी में लेते हुए कहा, यह आजाद देश है और हर कोई अपना व दूसरों का मनोरंजन करने के
लिए स्वतंत्र है. इस बाबत मशहूर स्टैंड अप आर्टिस्ट राजू श्रीवास्तव कहते हैं, जरा
सोचिये भारत में सैकड़ों मिमिक्री आर्टिस्ट हैं, जिनको देखते ही दर्शक हंसने पर मजबूर
हो जाते हैं. उनके द्वारा की गयी सितारों की नक़ल के जरिये ही हम कई पुराने
कलाकारों के अंदाज से वाकिफ होते हैं. वर्ना नयी पीढी को आज भी पुराणी पीढ़ी के कई
बड़े कलाकारों के नाम और शक्ल तक याद नहीं है. दरअसल मजाक उड़ाने से कहीं ज्यादा
बुरा मजाक बनाना होता है. अगर मिमिक्री कलाकार सितारों की नक़ल के नाम पर उनकी छवि
से खिलवाड़ करें या फिर उनकी व्यक्तिगत जिन्दगी पर हस्तक्षेप करें तो फिर यह बात
गंभीर हो जाती है. जैसा कि शाहरुख़ खान की एक फिल्म में मनोज कुमार अपना मजाक बनाये
जाने से आहत हुए थे. हालांकि बाद में उन्होंने शाहरुख़ और फरहा खान को भी माफ़ कर
दिया था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक
कार्यक्रम में विरोधियों पर व्यंग्य कसते हुए कह रहे थे कि आप हार्वर्ड से आये होंगे, मैं यहां हार्ड वर्क से पहुंचा
हूं. हालांकि वह भी जानते हैं कि सोशल मीडिया में विदेशी
यात्राओं को लेकर उनकी भी कम खिंचाई नहीं होती, शायद इसलिए वह व्यंग्य कसने के बाद
यह कहना नहीं भूले कि मुझे मालूम है कि मेरी इन बातों का मजाक उड़ाया जायेगा. वह
भी समझते हैं कि उनकी बातों का मजाक भी उड़ाया जाता है, भले ही सामने न
होकर पीठ पीछे हो. अब सबके खिलाफ एक्शन लेने के बजाए इन चुटकियों पर मुस्काकर आगे
बढ़ना ही समझदारी है. ऑफिस में चाहे बॉस को लेकर गढ़े गए चुटकुले हों या फिर राजनीति
की हस्तियों के नामों पर मौनी बाबा, पप्पू, फेंकू, जैसे
जुमलों का इस्तेमाल, इन पर चिढने के बाजे हँसना ही लाजिमी है. हाँ जब मजाक की सीमा
लांघी जाये तब विरोध दर्ज करना जरूरी है क्योंकि मजाक उड़ाना कई बार मजाक बनाना बन
जाता है. फोटोशोप के जरिये सोशल मीडिया में तस्वीरों को अभद्र तरीके से जोड़कर बेहूदा
हास्य पैदा करना भी हास्य की शीलता भंग करता है. इसका विरोध होना जरूरी है. इसी
तरह चुनाओं के दौरान व्यंग्य शैली की आड़ लेकर व्यक्तिगत बयानबाजी भी कहीं से हास्य
के दायरे में नहीं आती.
गोल्डन केला, रैस्बेरी और सेन्स ऑफ़ ह्यूमर
अमेरिका के फिल्म उद्योग में
सेन्स ऑफ़ ह्यूमर को खासी तरजीह मिलती है.
इसीलिए वहां बाफ्टा, एकेडमी
अवार्ड्स को लेकर जितनी उत्सुकता देखने को मिलती है, उतनी
उत्सुकता गोल्डन रैस्बेरी अवार्ड्स को भी मिलती है. बता दें कि हॉलीवुड के मनोरंजन
जगत में गोल्डन रैस्बेरी अवार्ड्स के जरिये साल के सबसे खराब सिनेमा, अभिनेता, अभिनेत्री, निर्देशक
आदि को ट्रोफी दी जाती है. इसी की
नक़ल पर भारत में कई सालों से गोल्डन केला अवार्ड्स साल की सबसे खराब और हंसी का
पात्र बनी फिल्मों को पुरस्कृत किया जाता है.
यह मनोरंजन का एक जरिया माना जाता है ताकि असफल फिल्मों
से जुड़े लोगों के गम को हास्य के माध्यम से कम किया जा सके.
जैसे कि हमारे यहाँ आज भी कई इलाकों
में महामूर्ख सम्मेलन में चुने हुए लोगों को सम्मानित किया जाता है.
इसके लिए बाकायदा ऑनलाइन वोटिंग के जरिये होता है.
दिलचस्प बात यह है की अमेरिका में इस अवार्ड को लेने सम्बंधित कलाकार कई बार
मौजूद भी होते हैं. हालांकि भारत में अभी कलाकार हास्यबोध के मामले में उतने परिपक्व नहीं लिहाजा मजाक
का पात्र बनने से बचते हैं.
कई बार स्टैंडअप कलकार अपने स्टेज शो के दौरान कुछ गैग्स करते हैं और सामने
बैठी जनता हूट करने लगती है. गीतकार और स्टैंड अप आर्टिस्ट वरुण ग्रोवर एक ऐसी ही
अनुभव को साझा करते हुए बताते हैं, एक दफा उन्होंने भारतीयों के ड्राइविंग और
ट्रैफिक के दौरान हौंक्स करने की आदत पर कटाक्ष किया तो दर्शक दीर्घा में बैठे एक
सज्जन ने उन्हें यहाँ तक कह डाला की भारतीयों का मजाक उड़ाते हुए शर्म नहीं आती.
तुम जैसों को तो गोली मार देनी चाहिए. वरुण कहते हैं अच्छा हुआ वह कोई राजनीतिक या
कोर्पोरेट हस्ती का बेटा नहीं था, जिसके हाथ में वाकई की गन होती है, वरना... वरुण
के मुताबिक़ हम भारतीय कभीकभी मजाक की बात को भी गंभीरता से लेकर उग्र हो जाते हैं
जबकि डार्क ह्यूमर और ब्लैक कॉमेडी में इतना तो चलता है. कमी है तो सिर्फ कोमन
सेन्स और सेन्स ऑफ़ ह्यूमर की.
AIB GANG |
मोरल पोलिसिंग क्यों
सेंसर बोर्ड की तो आये दिन फजीहत
होती रहती है. कभी बीप शब्दों की नयी लिस्ट निकालने के चलते तो कभी धर्म संस्कार
के ठेकेदारी के चलते. लेकिन फिलहाल इंटरनेट इस सेंसरशिप की वजह से बचा है. लेकिन
कुछ वक़्त पहले जब मुंबई में एआईबी नॉकआउट कार्यक्रम के दौरान अश्लीलता की बात उठी
और करण जौहर, रणवीर
सिंह, अर्जुन
कपूर और सोनाक्षी सिन्हा जैसी फ़िल्मी शख़्सियतों की मौजूदगी वाले इस शो की तीखी
आलोचना करते हुए इसे बेहद भद्दा और अश्लील बताया है. तब अचानक से धर्म और संस्कृति
का झंडा उठाये कई लोग विरोध में आ गए. जबकि इस शो को देखने वही लोग गए थे
जिन्होंने शो के मंहगे टिकट खरीदे थी. वीडियो पर अश्लीलता का आरोप लगाकर ब्राह्मण
एकता मंच नामक संगठन ने मुंबई के साकीनाका पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी.
अच्छी बात यह थी कि राज्य के संस्कृति मंत्री विनोद तावड़े ने एआईबी ने ज़रूरी
अनुमति ली थी या नहीं, की जांच की बात कही और मॉरल पोलिसिंग करने से साफ़ इनकार कर
दिया. अब घर के अन्दर कौन किस तरह का मजाक किस भाषा में कर रहा है या फिर कौन किस
तरह का शो, फिल्म
या गाना सुने इस पर सेंसर लगाना तो मोरल पोलोसिंग हुई. आज के युवा को मोरल पोलोसिंग की जरूरत
नहीं है. हास्य को अगर दायरे में बाँधा जाएगा तो वह फिर हंसी नहीं गंभीरता का
एहसास देगा. अमेरिका में सालों से दिखाये जा रहे लाइव हास्य कार्यक्रम सैटरडे नाइट
लाइव के तो लगभग हर एपिसोड में ओबामा से लेकर कई नामचीन हस्तियों की नक़ल कर मजाक
उड़ाया जाता है और किसी भी तरह की विरोधबाजी नहीं होती.
मर्ज, मजाक और इलाज
महात्मा गांधी ने एक बार हंसी
मजाक को लेकर कहा था कि यदि मुझमें विनोद प्रियता की वृत्ति न होती तो मैं
चिन्ताओं के भार से दब कर कभी का मर गया होता. यही तो मुझे चिन्ताओं में घुलने से
बचाये रखती है. मैल्कम मगरीज ने भी संसार में हँसी के बद्ठे अभाव को लेकर
चिंता जाहिर की थी. दरअसल आजकल की मशीनी और तेज जीवनशैली में तनाव बुरी तरह से
घुसपैठ कर बैठा है. डिप्रेशन के चलते लोग मानसिक व्याधियों की चपेट में आ रहे है.
और मजे की बात तो यह है कि हँसना भूल चुके लोगों को डाक्टर्स और मनोवैज्ञानिक लाफिंग
थैरेपी और लाफिंग क्लब ज्वाइन करने का सुझाव दे रहे हैं. हास्य से प्राप्त होने
वाली ऊर्जा का लाभ उठाने के लिए बड़ेबड़े चिकित्सालयों में रोगियों को हँसाने तथा
प्रसन्न करने के लिए हास्यविनोद की व्यवस्था मुहैया कराई जाती है. यानी हमारे
गंभीर होनी की आदत, सेन्स ऑफ़ ह्यूमर की कमी और हर हांजी मजाक को लेकर उग्र हो जाने
के रवैवे ने ज़िंदगी में न सिर्फ हास्यरस कम कर दिता है बल्कि हमें मानसिक तौर पर तनावग्रस्त
और नीरस बना दिया है. घर में टीवी के सामने अकेले में हंसने वाले जब सामाजिक तथा
सामूहिक हँसी की बात आती है तो अचानक से संस्कृति और भावनाओं के आहत होने का ढोल
पीटने लगते हैं. गम्भीरता के नाम पर हर समय मुँह लटकाये, गाल फुलाये, माथे में बल और
आँखों में भारीपन भरे रहने वाले व्यक्तियों ने समाज को निर्जीव और संवेदहीन सा बना
दिया है.
आज हंसी और खेल में लोगों को पढाई गयी बातें ज्यादा याद
रहती हैं. एक ज़माने में बड़ेबड़े राजा महाराजा स्वाँग, नौटंकी और दरबार में
तनाव दूर करने के हसोड़ कलाकारों के नियुक्ति करते थे. अकबर बीरबल की हाजिरजवाबी
में हास्यबोध निकाल दें तो कुह भी नहीं बचेगा. इसी तरह तेनालीराम से लेकर पंचतंत्र
आदि साहित्य अपने चुटीले हास्य के चलते आज
भी पसंद किया जाता है. समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में सालों से प्रकाशित व्यंग,
कार्टून, हर बड़ी हस्ती को मजाक की चाशनी में लपेटकर कटाक्ष करती आई है और सबने खुले
दिल से इस पर मुस्कराहट बिखेरी है लेकिन अब हम हास्य से इतना चिढने क्यों लगे है,
क्यों हम हर बात पर गंभीर हो जाते हैं, हास्य से इतना परहेज आखिर किसलिए.
जिस हास्य से मन खुश हो जाता हो उस से ऐतराज नहीं होना
चाहिए. सही मायने में हास्यपूर्ण बनना और साथ में एक हंसी साझा
करके लोगों को प्रोत्साहित करना, आपको
लोकप्रिय और सफल बनाने में मदद कर सकता हैं. हास्य जीवन के सरल पक्ष का अनुभव करने
में मदद करता है. समाज में
सहिष्णुता की जो कमी लगातार महसूस की जा रही है, उसका एक कारण हास्य बोध की कमी ही है. अगर हम अपने मानसिक
संकीर्ण दायरे को तोड़ते थोडा खुद पर थोडा दूसरों पर हँसना सीखे तो शायद आपकी
जिन्दगी और इस दुनिया से तनाव में कमी आये.
----RAJESH KUMAR
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