फिल्म समीक्षा-
अनारकली ऑफ़ आरा
-- राजेश कुमार
anarkali of aarah |
अनारकली ऑफ़ आरा देखी.. देर से देखने के लिए माफी. इसके
शुरुआती दर्शकों में खुद को शुमार करके चले थे. खैर देर से सही, देख ली.
हर वो पत्रकार जो थोडा बहुत सिनेमाई सेन्स रखता है और मन
में कहीं सिनेमा से जुड़ने का आग्रह रखता है, उसे अनारकली ऑफ़ आरा से एक सुपर सोनिक
पुश मिली है. कुछ ऐसी हिम्मत जो पत्रकार बिरादरी के ही विनोद कापडी की फिल्म मिस
टनक पुर हाजिर हो से मिलते मिलते कहीं रह गयी थी.
आपकी फिल्म में एक संघर्ष और जाति, समाज और वर्गभेद की हर
वो झलक मिल जाती है जो आपने अपने अनुभवों से देखी और भोगी होगी. बिहार और देश के
अन्य हिस्सों में अनारकली सरीखे न जाने कितने पुरुष और महिला किरदार सिस्टम के
हाथों सरेआम स्टेज में नोचेघसीटे और दमित होते हैं और पुलिस प्रशासन मूक दर्शक रहता रहता है. ऐसे में
अनारकली को एंग्री यंग वीमेन की छवि में ढालकर आपने सिनेमा के सफल और आजमाए
फॉरमूले में अपने मुहावरे करीने से फिट कर दिए हैं. कहीं आर्ट फिल्म की झलक तो
कहीं रीजनल जैसा स्वाद देती आपकी फिल्म कम से कम संसाधन में वो सब कर जाती हैं जो
प्रकाश झा की गंगाजल बड़े सितारों और संसाधनों पर सवार होकर करती है. हालंकि जबान
और कथ्य के मामले में आपकी फिल्म ज्यादा प्रमाणिक दिखती है.
दिल्ली को नंगा करके दिखाने का प्रयास अच्छा है आपका. वर्ना
मेट्रो और सीपी के एरियल शॉट्स और झंडेवालान की हनुमान मंदिर के लॉन्ग शॉट्स बेचकर
यहाँ के लाइन प्रोड्यूसर्स मुम्बईया फिल्मकारों को बुडबक बनाते रहते हैं. दिल्ली
का एक बड़ा हिस्सा इतना ही बेबस और सडांध भरा है जितना आपने सेकण्ड हाफ में दिखाया है. नितिन फिल्म जुगाड़
में भी थे और यहाँ भी अच्छे लगते हैं. संजय मिश्रा से ऐसा काम करवाकर आपने उनके
शायद दोस्तीयारी और जानपहचान के सारे कर्जे अदा कर दिए. स्वरा को तो अपनी जंजीर और
डर्टी पिक्चर दोनों ही एक बार में मिल गयी. हीरामन बेहद मूल और मास्टर स्ट्रोक
टाइप एबस्ट्रेक्ट किरदार था. जिस पर सबसे ज्यादा समय सोचा और बहस किया जा सकता है.
आपका साहित्य, नाटक और लोकगीतों के प्रति झुकाव नहीं होता तो संगीत इतना सजीव और
शाब्दिक अमरत्व से लैस नहीं होता. पूरी टीम बधाई की पात्र है और उसे टीम बनाने के
लिए आप को सलाम.
मन कहता है कि अगर इस फिल्म को आप भोजपुरी दर्शकों और
भोजपुरी बेल्ट के लिए ही तैयार और रिलीज करते तो ज्यादा कामयाबी हासिल करते.
कामयाबी तो खैर आपके लिए कहीं भी हासिल करना मुश्किल नहीं है लेकिन नितिन चंद्रा
जो प्रयास भोजपुरी फिल्मों के जरिये कर रहे हैं उसको अनारकली का साथ मिलता तो
भोजपुरी दर्शकों को शायद वहां की अश्लील, लिजलिजी और भौडी फिल्मों से कुछ अलग
मिलने का रास्ता खुल जाता. यह मेरी निजी राय है.
आखिर में बस इतना... कि मेरी तरह ऐसे ही एकतरफा और अनजाने
रिश्तों के तारों से जुड़े हैं आप कई लोगों से. जो आपके काम, संघर्ष और सपनों को
मिलते परवाजों से उत्साहित होकर नए सपने देखने और जिद को यकीन में बदलने की हिम्मत
कर रहे हैं. आप परदे के पीछे और परदे के बाहर ऐसे ही खिलते , मुस्कराते और लड़ते
रहे.....अगली फिल्म के लिए अभी से ढेर सारी आशाओं वाली शुभकामनाएं .....
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