Wednesday, November 3, 2010
पर्दे की चमक में अंधे खिलाड़ी
हाल ही में क्रिकेट से जुड़ी दो बड़ी खबरें सुर्खियों में रहीं. पहली यह कि इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के पहले संस्करण का खिताब जीतने वाली राजस्थान रॉयल्स टीम के छह खिलाड़ी सोनी पर प्रसारित होने वाले रिएलिटी शो इंडियन आयडल-5 में दिखेंगे. दूसरी यह कि निखिल आडवाणी की आगामी फिल्म पटियाला हाउस की शूटिंग के लिए कमेंटेटर संजय मांजरेकर एवं निखिल चोपड़ा समेत कई खिलाड़ी छुट्टी ले रहे हैं. ताज़्जुब की बात यह है इन दोनों खबरों में सब कुछ था, सिवाय क्रिकेट के.
क्रिकेटरों का फिल्मों के प्रति पहला प्यार सलीम अजीज दुर्रानी के रूप में 1973 में आई फिल्म इशारा में नज़र आया था. जब 1983 का विश्व कप जीतने का खुमार लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा था और उसी दौरान 1985 में फिल्म कभी अजनबी थे से संदीप पाटिल, सैयद किरमानी और लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर ने सिल्वर स्क्रीन पर पदार्पण किया. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर दम तोड़ गई.
जबसे इस देश में आईपीएल और आईसीएल के बहाने क्रिकेट का व्यवसायीकरण हुआ है, तभी से इस खेल को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझ लिया गया है. हर कोई ज़्यादा से ज़्यादा अंडे पाने की चाह में मुर्गी को ही हलाल करने में जुटा है. खिलाड़ियों की बात करें तो इन्हें पैसे और ग्लैमर की चकाचौंध का ऐसा चस्का लगा है कि दिन-रात ये उसी में डूबे रहना चाहते हैं.
सीरीज़ से पहले चोटिल होकर मैदान से बाहर हो जाएंगे, लेकिन आराम के बजाय अधिक से अधिक पैसा कमाने की जुगत भिड़ाने में लग जाएंगे. विज्ञापन, कैंपेनिंग, लेटनाइट पार्टीज और टीवी तो इनका पुराना धंधा है, पर पिछले कुछ समय से इन्हें फिल्मी पर्दे पर दिखने का शौक चढ़ा है. कई खिलाड़ी फिल्में पर्दे पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने को बेताब हैं. पटियाला हाउस में जहां कई खिलाड़ी मेहमान भूमिकाओं में नज़र आएंगे, वहीं सचिन के भी एक फिल्म में काम करने की खबरें आ रही हैं. सचिन से पहले भारतीय टेस्ट टीम के कप्तान अनिल कुंबले भी मीरा बाई नॉट आउट में मेहमान भूमिका में नज़र आए थे. क्रिकेट खिलाड़ियों ने बेशक़ ऑफ़ द फील्ड फिल्मों में काम किया हो, लेकिन एकाध खिलाड़ी (सलिल अंकोला) की कामयाबी को अपवाद मान लिया जाए तो अधिकांश खिलाड़ियों का फिल्मों के चक्कर में करियर तक बर्बाद हो चुका है.
बहरहाल, क्रिकेटरों का फिल्मों के प्रति पहला प्यार सलीम अजीज दुर्रानी के रूप में 1973 में आई फिल्म इशारा में नज़र आया था. जब 1983 का विश्व कप जीतने का खुमार लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा था और उसी दौरान 1985 में फिल्म कभी अजनबी थे से संदीप पाटिल, सैयद किरमानी और लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर ने सिल्वर स्क्रीन पर पदार्पण किया. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर दम तोड़ गई. इस फ़िल्म में क्लाइव लॉयड ने भी अतिथि भूमिका निभाई थी. गावस्कर ने कभी अजनबी थे के अलावा मराठी फ़िल्म सावली प्रेमाची एवं जाकोल और हिंदी फिल्म मालामाल में असफल पारी खेली. इसी तरह का फ्लॉप शो अनर्थ में सचिन के दोस्त विनोद कांबली ने दिखाया. मैच फिक्सिंग की सज़ा भुगत रहे हरफनमौला जडेजा को सुनील शेट्टी की होम प्रोडक्शन फिल्म खेल में मौका मिला, लेकिन हाल वही ढाक के तीन पात. फिल्म मुझसे शादी करोगी में हरभजन सिंह, जवागल श्रीनाथ, पार्थिव पटेल एवं आशीष नेहरा ने भी अतिथि भूमिकाएं निभाई थीं. कुल मिलाकर सभी के सितारे डूब गए. अगर इतनी मेहनत ये क्रिकेट के लिए करते तो शायद इनका करियर यादगार बन जाता. भारतीय क्रिकेटरों के अलावा पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर मोहसिन खान भी बॉलीवुड में हाथ आज़मा चुके हैं. मोहसिन जे पी दत्ता की फिल्म बंटवारा और महेश भट्ट की फिल्म साथी में नज़र आए. कुछ समय पहले निर्माता संघमित्रा चौधरी की फ़िल्म मैं और मेरी हिम्मत में रावलपिंडी एक्सप्रेस शोएब अख्तर द्वारा काम करने की खबरों ने सबका ध्यान आकर्षित किया था, लेकिन उन्होंने लंबी कवायद के बावजूद एक्टिंग नहीं की. फिलहाल उनकी जगह डोपिंग में फंसे पाक स्पीड स्टार मोहम्मद आसिफ इस फ़िल्म में अभिनय करने के कारण सुर्खियों में हैं. ग़ौरतलब है कि दोनों का ही करियर ढलान पर है.
ब्रेट ली भी फिल्म विक्ट्री के जरिए सिल्वर स्क्रीन पर क़दम रख चुके हैं. इसमें उनके अलावा कई और दिग्गज क्रिकेटर मसलन स्टुअर्ट क्लार्क, जेसन गिलेस्पी, माइकल हसी, साइमन केटिच एवं एलन बॉर्डर, इंग्लैंड के साइमन जोंस एवं साजिद महमूद, न्यूजीलैंड के क्रेग मैकमिलन, डेरेल टफी, नाथन एसतल एवं मार्टिन क्रो के अलावा प्रवीन कुमार, आर पी सिंह, दिनेश कार्तिक, पंकज सिंह सहित कई जाने-पहचाने भारतीय युवा क्रिकेटर फिल्मों में काम कर चुके हैं. जबकि फ़िल्म में अंपायर का किरदार ऑस्ट्रेलिया के डेरेल हार्पर ने निभाया. इसी तरह ज़्यादातर खिलाड़ियों को जब अभ्यास सत्र में शामिल होकर प्रैक्टिस करनी चाहिए, वे फिल्मों में लगे रहते हैं. नतीजतन हमारी टीम के खेल में निरंतरता का अभाव रहता है. कोई भी खिलाड़ी आज सेंचुरी बना लेता या टीम को हारने से बचा लेता है तो इस बात की गारंटी नहीं है कि वह अगली पारी में भी अच्छा खेलेगा. पर यह बात पक्की है कि वह कल किसी टीवी कार्यक्रम, विज्ञापन या फिल्म में ज़रूर दिखाई देगा. पर्दे की चमक में अंधे ये खिलाड़ी सब कुछ करेंगे, सिवाय खेलने के.
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