Monday, May 1, 2017

एक्सक्लूसिव इन्टरव्यू 
प्रेमचंद, मंटो बनना था लेकिन पोर्न लेखक बन गया- राहुल बग्गा


Rahul bagga




गैंग्स औफ वासेपुर फिल्म के स्क्रिप्ट राइटर अखिलेश जयसवाल बतौर निर्देषक अपनी पहली फिल्म मस्तराम लेकर आए हैं. काल्पनिक बायोपिक पर बेस्ड यह फिल्म हिंदी के पहले पोर्न व इरोटिका लेखक मस्तराम के बारे में है. गौरतलब है कि 80-90 के दशक में मस्तराम के छदम नाम से पीले पन्नों में सिमटा लुग्दी साहित्य उत्तर भारत के स्टेशनॉन, सड़कों और बुकस्टालों पर खासा लोकप्रिय था. फिल्म में मस्तराम का लीड किरदार राहुल बग्गा निभा चुके हैं. 10 साल थिएटर में काम कर चके राहुल फिल्म मस्तराम से पहले कई विज्ञापन फिल्मों समेत अनुराग कष्यप की फिल्म लव षव ते चिकन खुराना में अहम किरदार निभा चुके हैं. हाल ही में फिल्म थिएटर और टीवी से जुड़े कई पहलुओं पर उन से राजेश कुमार की बातचीत हुई.

film mastram


फिल्म मस्तराम बोल्ड औफबीट और नौनकमर्षियल सी है, डर नहीं लगा कि नवोदित कलाकार हैं, मास तक पहंच नहीं पाएंगे?
मुझे लगता है कि मस्तराम से ज्यादा कमर्षियल सब्जेक्ट कुछ हो नहीं सकता. और कभी औफबीट या कमर्षियल के बारे में सोचा नहीं. पर हां, जब अखिलेष जायसवाल से फिल्म को लेकर बात हुई, तभी तय कर लिया था कि कहानी अगर पोर्न राइटर की है तो इसका मतलब यह नहीं कि हम इसमें सैक्स सींस या पार्न एलिमेंट डालकर बेचने की कोषिष करेंगे. फिल्म एक ऐसे भोलेभाले लेखक की कहानी है जो पे्रमचंद, मंटो और केदारनाथ जैसा लेखक बनने को संशर्शरत है लेकिन सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियां उसे ऐसी चीज लिखने पर मजबूर कर देती हैं जिस चीज को वह खुद भी नहीं जानता था.

मुंबई की बसों से फिल्म के पोस्टर्स हटाए गए, फिल्म पर अष्लीलता बढ़ाने का आरोप लगा, कितनी सचाई है इस बात में?
सिर्फ गलतफहमी के चलते ऐसा हुआ. चूंकि हमने कहानी का ऐसा बैकड्राप चुना है जिसने पोर्न को हिंदी भाशा में इंट्रोडयस किया. इसलिए सबाके लगता हक् यह भी पौर्न फिल्म होगी. जबकि फिल्म में न तो सैक्स है और न ही पोर्न. हां ये कामुक जरूर है पर इसमें वल्गैरिटी नहीं है. मस्तराम की कहानियां अपने ही ढंग में कलात्मक और हास्यास्पद होती थीं. हमेे भी अपनी बात कहने के लिए हास्य का सहारा लिया है. 

मस्तराम  पोर्न साहित्य लेखक है, इसे परदे विजुलाइज करना सैंसर बोर्ड और दर्षकों के लिहाज से कितना मुष्किल रहा?
चुनौती तो थी. हमारे पास दो रास्ते थे पहला उनका लिखा विजुअल में एजइटइज बदलते जो समाज कभी नहीं स्वीकारता दूसरा आर्टिस्टिक अ्रप्रोच अपनाना. हमने दूसरा रास्ता अपनाया. हमने कौमिक ऐलिमेंट डाला. हमने मस्तराम को सटायर में यूज करने की कोषिष की..


जब बायोपिक बनती है तो फरहान अख्तर मिल्खा सिंह से मिलकर रोल तैयार करते हैें लेकिन मस्तराम के बारे में कोई नहीं जानता, फिर कैसे परदे पर उतारा मस्तराम को?
सच कह रहे हैं. षुरुआत में मेरे लिए भी कठिन था कि कैसे उस किरदार को ड्राफट करेंगे जो किसी ने देखा ही नहीं. मुझे लगता है कि मस्तराम आम लोगों के दिल में बसता था. जब मैं थिएटर में था तभी मस्तराम को पढ़ा था. मेरा परपज अलग होता था. उन की लिखावट से  कलाकारों को अभिनय में दृष्यात्मकता समझने में आसानी होती है. आप कह सकते हैं कि मेरी तैयारी तभी से चल रही है.




मस्तराम को दर्षक या समाज स्वीकारने में हिचकता क्यों है?
मस्तराम के साथ त्रासदी यह है कि एक तो वह पोर्न लिखता था वो भी हिंदी में. आज भी हमारे यहां का यूथ को हिंदी डाउन मार्केट मानता है. अगर हम किसी अंग्रेजी के पोर्न राइटर पर फिल्म बनाते तो उसकी स्वीकार्यता बढ़ जाती. मस्तराम की किताबें छिपछिपकर सब पढ़ते थे लेकिन स्वीकार कोई नहीं करता था. समाज के इसर रवैए को हमे दिखाया है. हालांकि अनुराग कष्यप इम्तियाल अली और तिग्मांषु जैसे फिल्मकारों के चलते लोगों की स्वतंत्र और नए सिनेमा प्रति सोच बदली है. वे अच्छे और बुरे सिनेमा में फर्क करना सीख गए हैं.

एक नए कलाकर को फिल्मों में काम पाना कितना आसान या मुष्किल प्रोसेस है?
सबसे जरूरी है खुद पर विष्वास करना कि जो वो करना चाहता उसे एक दिन जरूर हासिल होगा. किसी के लिए सफलता 15 दिन में आ जाती है कोई सालों इंतजार करता है. मेरे लिए तो यह एक कभी न खत्म होने वाली जर्नी है.

आपके लिए अभिनय के क्या मायने हैं/?
मैं समझता हूं कि अभिनय ही ऐसा माध्यम है जिस के जरिए आप वह सब कर सकते हैं जो असल जिंदगी में नहीं कर पाते. जैसे मैं इंट्रोवर्ट हूं. न कभी किसी से झगड़ा हुआ और न किसी को प्रपोज किया. लेकिन थिएटर या फिल्मों के जरिए आप अपनी जीवन के सभी इमोषन निकाल सकते हैं. हंस सकते हैं, रो सकते हैं, किसी से प्यार का इजहार भी कर सकते हैं.

फिल्म की रिलीज के बाद राहुल करियर के लिहाज से खुद को कहां देखते हैं?

मस्तराम के बाद लोग जानने लगे हैं. काम भी मिलने लगा है. मैं चाहता हूं कि इस तरह की अच्छी स्क्रिप्ट मेरे पास आएं. चूंकि थिएटर से हूं इसलिए हमेषा कोषिष रहेंगी कि जिस फिल्म में भी काम करूं उसमें समाज के लिए कोई सार्थक संदेष जरूर हो. 

-- राजेश कुमार 

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